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भगवान बुद्ध की 2565वीं जयंती,बौद्ध धर्म के लिए त्रिविध वैशाख पूर्णिमा(बुद्ध पूर्णिमा)का है विशेष महत्व।

भगवान बुद्ध की 2565वीं जयंती,बौद्ध धर्म के लिए त्रिविध वैशाख पूर्णिमा(बुद्ध पूर्णिमा)का है विशेष महत्व।

गया आज भगवान बुद्ध की 2565वीं जयंती मनाया जा रहा है।
बौद्ध धर्म के लिए वैशाख पूर्णिमा का एक विशेष महत्व होता है।वैशाख पूर्णिमा को त्रिविध पावन बुद्ध पूर्णिमा कहा जाता है, वैशाख पूर्णिमा के दिन ही आज से ढाई हजार वर्ष पहले लुम्बिनी के शालवन में राजकुमार सिद्धार्थ, राम ग्राम में 
राजकुमार यशोधरा कपिल वस्तु में छन्द् और कन्थक, बोधगया में पवित्र बोधिवृक्ष एवं मुचलिंद नागराज तथा कुशीनगर में जुड़वां शाल वृक्षों का जन्म हुआ था।
आज ही के दिन राजकुमार सिद्धार्थ ने  बोधगया में बोधिवृक्ष के शीतल छाया में सम्यक् सम्बोधि(ज्ञान प्राप्त)प्राप्त किए थे।
इतना ही नहीं 45वर्षों तक लोक कल्याण के लिए सतत धम्मं देशना देते हुए और धम्मं जीवन व्यतीत करते हुए तथागत भगवान बुद्ध ने कुशीनगर के शालवन में महापरिनिर्वाण को प्राप्त हुए थे।
भगवान बुद्ध संसार के पहले महामानव है जिनके जीवन के तीनों महत्वपूर्ण घटनाए एक ही दिन घटित हुई है, इसलिए सम्पूर्ण विश्व के लिए यह बहुत ही पवित्र दिन माना गया है।
         इसी अवसर पर बोधगया स्थित विश्व धरोहर महाबोधी मंदिर में सुबह 8 बजे बौद्ध भिक्षुओं ने हाथो में चीवर,खीर,फूल इत्यादि लेकर शोभायात्रा के साथ महाबोधी मन्दिर पहुंचे।जहां सर्वप्रथम मन्दिर के गर्भगृह में भगवान बुद्ध का चीवर बदलने के बाद उन्हें खीर अर्पित की गई।बौद्ध भिक्षुओं द्वारा पूजा-अर्चना की गई।इसके बाद मन्दिर के पश्चिम में स्थित पवित्र बोधिवृक्ष के नीचे पहले थेरवाद परंपरा से उसके बाद महायान परंपरा के साथ सूतपाठ किया गया।उसके बाद भगवान बुद्ध से पूरे विश्व को कोरोना महामारी से मुक्ति व विश्व कल्याण की कामना किया गया। 
हालांकि यह दूसरा वर्ष है जब कोरोना जैसे वैश्विक महामारी के असामान्य परिस्थितियों के बीच भगवान बुद्ध की  इस पवित्र दिन को मनाया जा रहा है।
गया आज भगवान बुद्ध की 2565वीं जयंती मनाया जा रहा है।
बौद्ध धर्म के लिए वैशाख पूर्णिमा का एक विशेष महत्व होता है।वैशाख पूर्णिमा को त्रिविध पावन बुद्ध पूर्णिमा कहा जाता है, वैशाख पूर्णिमा के दिन ही आज से ढाई हजार वर्ष पहले लुम्बिनी के शालवन में राजकुमार सिद्धार्थ, राम ग्राम में 
राजकुमार यशोधरा कपिल वस्तु में छन्द् और कन्थक, बोधगया में पवित्र बोधिवृक्ष एवं मुचलिंद नागराज तथा कुशीनगर में जुड़वां शाल वृक्षों का जन्म हुआ था।
आज ही के दिन राजकुमार सिद्धार्थ ने  बोधगया में बोधिवृक्ष के शीतल छाया में सम्यक् सम्बोधि(ज्ञान प्राप्त)प्राप्त किए थे।
इतना ही नहीं 45वर्षों तक लोक कल्याण के लिए सतत धम्मं देशना देते हुए और धम्मं जीवन व्यतीत करते हुए तथागत भगवान बुद्ध ने कुशीनगर के शालवन में महापरिनिर्वाण को प्राप्त हुए थे।
भगवान बुद्ध संसार के पहले महामानव है जिनके जीवन के तीनों महत्वपूर्ण घटनाए एक ही दिन घटित हुई है, इसलिए सम्पूर्ण विश्व के लिए यह बहुत ही पवित्र दिन माना गया है।
         इसी अवसर पर बोधगया स्थित विश्व धरोहर महाबोधी मंदिर में सुबह 8 बजे बौद्ध भिक्षुओं ने हाथो में चीवर,खीर,फूल इत्यादि लेकर शोभायात्रा के साथ महाबोधी मन्दिर पहुंचे।जहां सर्वप्रथम मन्दिर के गर्भगृह में भगवान बुद्ध का चीवर बदलने के बाद उन्हें खीर अर्पित की गई।बौद्ध भिक्षुओं द्वारा पूजा-अर्चना की गई।इसके बाद मन्दिर के पश्चिम में स्थित पवित्र बोधिवृक्ष के नीचे पहले थेरवाद परंपरा से उसके बाद महायान परंपरा के साथ सूतपाठ किया गया।उसके बाद भगवान बुद्ध से पूरे विश्व को कोरोना महामारी से मुक्ति व विश्व कल्याण की कामना किया गया। 
हालांकि यह दूसरा वर्ष है जब कोरोना जैसे वैश्विक महामारी के असामान्य परिस्थितियों के बीच भगवान बुद्ध की  इस पवित्र दिन को मनाया जा रहा है।






      गया से अशोक शर्मा की रिपोर्ट

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