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मोहर्रम को लेकर के ओपी परिसर में शांति समिति का बैठक

मोहर्रम को लेकर के ओपी परिसर में शांति समिति का बैठक
सहरसा-सोनबरसा राज थाना आगामी मुहर्रम पर्व को लेकर के मुसलमान भाइयों का पवित्र पर्व मुहर्रम को लेकर के शांति समिति की बैठक आयोजित की गई जिसमें थाना अध्यक्ष सुनील कुमार भगत और प्रखंड विकास पदाधिकारी कैलाशपति मिश्रा, अंचलाधिकारी उदय शंकर मिश्रा,

अध्यक्षता में समापन हुआ  थाना अध्यक्ष सुनील कुमार भगत ने बताया कि विगत वर्ष की भांति इस वर्ष भी लॉकडाउन को लेकर के घर में ही ताजिया बनाकर पर्व को शांतिपूर्वक मनाया जाना है सरकार की तरफ से दिशा निर्देश जारी हुआ है वही ताजिया को लेकर के किसी प्रकार की जुलूस प्रदर्शन पर पाबंदी रहेगा ताजिया लेकर के मुख्य सड़क पर निकलना मना है शांति समिति की बैठक में प्रखंड क्षेत्र के सभी पंचायत के जनप्रतिनिधि सहित सभी राजनीतिक दल उपस्थित रहे मोहरम को लेकर के आई नेता ने बताया कि मोहरम एक शोक का पर्व है खुशी का त्यौहार नहीं इसीलिए सरकार के  दिशा निर्देश को ध्यान में रखते हुए मोहर्रम त्यौहार अपने-अपने घरों में शांति वातावरण से मनाया जाना चाहिए किसी तरह की हिंसा नहीं होना चाहिए मौके पर उपस्थित

 बिराटपुर मुखिया पति हसिर उद्दीन, सोनवर्षा मुखिया मोहम्मद अंसार आलम, उप मुखिया मो हम्मद जफर आलम, मसीर आलम, पूर्व मुखिया मोहम्मद इवरहिम , फतेह आलम, व्यापार मंडल के अध्यक्ष लल्लन प्रसाद सिंह, पूर्व उप प्रमुख कुमार मोलेश सिंह, भाजपा जिला अध्यक्ष युवा मनीष   कुमार, अमीर राम, लोजपा जिला महासचिव दिनेश कुमार सिंह, पंचायत समिति मंटू सिंह, भाजपा प्रखंड युवा अध्यक्ष बबन सिंह, समाजसेवी राजीव सिंह, पंचायत समिति अशोक यादव, पंचायत समिति कमर आलम, जिला परिषद अमरेंद्र भास्कर, जदयू के वरिष्ठ नेता पृथ्वी चंद सादा, विधायक प्रतिनिधि नवर विश्वास,एडवोकेट शैलेंद्र सिंह, उपस्थित रहे




      पतरघट से देवेंद्र कुमार की रिपोर्ट

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साहित्य संसार: साक्षात्कार

कवि और कलाकार अशोक धीवर "जलक्षत्री "छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले में  स्थित तुलसी ( तिलदा नेवरा ) के निवासी हैं।   इन्होंने  दहेज प्रथा और समाज में कन्याओं की दशा के अलावा अन्य सामाजिक बुराइयों के बारे में पुस्तक लेखन और संपादन का काम किया है। मूर्तिकला में भी इनकी रुचि है।  यहां प्रस्तुत है ,  प्रश्न:आप अपने घर परिवार और शिक्षा दीक्षा के बारे में बताएं? *उत्तर:मेरा बचपन बहुत ही गरीबी में बिता। मेरे माता-पिता ने अपने नि:संतान चाचा- चाची के मांगने पर मुझे दान दे दिए थे। अर्थात् उन लोगों ने गोद लेकर मेरा परवरिश किया। तब से वे लोग मेरे माता-पिता और मैं उनका दत्तक पुत्र बना। इसलिए बचपन से ही मैंने ठान लिया था कि, जिसने अपने कलेजे के टुकड़े का दान कर दिया। उनका भी मान बढ़ाना है, सेवा करना है तथा जिन्होंने अपने पेट का कौर बचाकर मेरा पेट भरा, उनका भी नाम तथा मान बढ़ाना है। सेवा करना है। गरीबी के कारण दसवीं तक पढ़ पाया था। व्यावसायिक पाठ्यक्रम के तहत बारहवीं उत्तीर्ण किया। उसी समय मैंने सोच लिया था कि आगे बढ़ने के लिए कम पढ़ाई को बाधक बनने नहीं दूंगा और जो काम उच्च शिक्षा प्र