श्रीरामचरितमानस एवं गीता ज्ञान यज्ञ का भव्य आयोजन किया जा रहा है।
सिरादेय पट्टी चौक, कहरा, सहरसा में दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा दिनांक 28 से 30 दिसंबर 2021 दोपहर- 1:00 बजे से सायं 5:00 बजे तक तीन दिवसीय श्रीरामचरितमानस एवं गीता ज्ञान यज्ञ का भव्य आयोजन किया जा रहा है।
कार्यक्रम के प्रथम दिवस संस्थान के संस्थापक एवं संचालक सतगुरु सर्वश्री आशुतोष महाराज जी की शिष्य स्वामी श्री स्वामी यादवेन्द्रानंद जी ने सत्संग के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जीवन में संगति का महत्वपूर्ण भूमिका होता है
मनुष्य जैसा संग करता है वैसे ही उसपर रंग चढ़ता है। दुर्योधन शकुनि का संग करके आजीवन दुःखी व पराजित हुआ एवं अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण का संग करके "विजयश्री" को हासिल किया। उन्होंने संत सहजोबाई के एक पंक्ति का उल्लेख करते हुए कहा कि
"सहजो साधु संग से काग हंस हो जाए ।
तज के भक्ष अभक्ष को मोती चुग चुग खाए।।"
उन्होंने कहा कि बुरे संगति को प्राप्त कर मनुष्य बिगड़ जाता है परंतु कितना भी बिगड़ा हुआ मनुष्य क्यों न हो अगर साधु का संगति को प्राप्त कर ले तो उसके जीवन में सुपरिवर्तन आता है उन्होंने अंगुलिमाल के जीवन का उदाहरण देते हुए कहा कि अंगुलीमाल जैसे डाकू भी गौतम बुद्ध का सानिध्य पाकर जीवन में बदलाव आया।अंगुलिमाल के जीवन में सत्संग हुआ। उन्होंने सत्संग को परिभाषित करते हुए कहा कि जो हम कथा पंडाल या टेलीविजन में सुनते हैं यह सत्संग नहीं है।
अपितु सत्संग 2 शब्दों के मेल से बना है, सत्य + संग बराबर सत्संग अर्थात सत्य यानि परमात्मा का संग करना ही सत्संग है। मनुष्य के जीवन में जब एक श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ पूर्ण सद्गुरु का पदार्पण होता है। वह पूर्ण सत्गुरु हमें दिव्य चक्षु प्रदान कर हमारे अंदर ही उस ईश्वर के साश्वत रूप (प्रकाश स्वरूप) का तत्क्षण साक्षात्कार कराते हैं।
उन्होंने कहा कि सत्संग मनुष्य के जीवन का एक अहम् घटना है। इसके घटित हुए बिना मनुष्य दिखावे का कुशल व्यवहार कर तो सकता है, परंतु आंतरिक परिवर्तन कदापि संभव नहीं है।
गोस्वामी तुलसीदासजी ने रामचरितमानस में कहा-
बिनु सत्संग न हरि कथा तेहि बिनु मोह न भाग।
मोह गएँ बिनु राम पद होइ न दृढ़ अनुराग।।
उन्होंने कहा कि जीवन में वास्तविक सत्संग हुए बिना मोह का नाश होना संभव नहीं है। जब अर्जुन के जीवन में भगवान श्री कृष्ण आए उन्होंने ईश्वर का साक्षात्कार कराया तब अर्जुन की मुख से उद्घोष हुआ नष्टो मोहा स्मृतिर्लब्धा।
अर्थात- मेरी स्मृति पुनः वापस आ चुकी है, मेरा मोह का नाश हो चुका है।
कार्यक्रम में साध्वी सुश्री महा माया भर्ती, सुश्री शीतली भारती, सुश्री पुष्पा भारती, तथा गुरु भाई संजय जी एवं गुरु भाई गोपालजी, चंदन जी आदि ने सुमधुर भजनों का गायन तथा सुर व लयबद्ध किया।
सहरसा से बलराम कुमार शर्मा की रिपोर्ट
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