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साहित्य संसार पुस्तक समीक्षा काव्य रश्मियां ( कविता संग्रह )रश्मिलता मिश्रा

साहित्य संसार 

पुस्तक समीक्षा 
काव्य रश्मियां ( कविता संग्रह )रश्मिलता मिश्रा 
अर्णव प्रकाशन 
एस.पी. बंगले के पीछे 
वार्ड नं . 14 
शहडोल 
मध्यप्रदेश
मोबाइल 7000103541 
मूल्य ₹ 215/ - 
प्रथम संस्करण 
2021

कविता में नारी के मनप्राण की सहजता का समावेश और उसकी
नैसर्गिक जीवन चेतना की सार्थक अभिव्यक्ति !

राजीव कुमार झा

सदियों से कविता के सुरम्य वितान में ईश्वरप्रेम के साथ मन के अतरंग भावों की अभिव्यक्ति समायी रही है और प्रकृति समाज 
जनजीवन के अलावा समसामयिक परिवेश का यथार्थ कविता की विषयवस्तु को प्राणवत्ता प्रदान करता रहा है !
कवयित्री रश्मिलता मिश्रा की कविताएं इस दृष्टि से पठनीय हैं !

" चाँदनी से मिल गले , शाम की चादर तले !
सपनों के गाँव चलें , शाम की चादर तले !
झूमता जहान है , खुला आसमान है  !
अंबर का अरमान है मिलूँ धरा से गले !
शाम की चादर तले पंछी लें डेरों की राह !
नीड़ पहुँचने की है चाह देख रहा कोई है राह !
किसी का साथ मिले , 
शाम की चादर तले !
सतरंगे सपनों से मिल मन सुमन गया है खिल!
 तारों की यह झिलमिल!
 तेरी चूनर साज चले , शाम की चादर तले ! ''

 रश्मिलता मिश्रा के नये कविता संग्रह " काव्य रश्मियां"  में संकलित कविताओं में  मूलत: ईश्वर के स्मरण उसकी पूजा अर्चना के रूप में रची गईं कविताओं का समावेश है और इसके अलावा कवयित्री ने अपनी इन कविताओं में विभिन्न प्रकार के मौसमों और ऋतुओं की   सुन्दरता और सजीवता के माध्यम से अपने मन के विविध भावों को भी कविता में यहां पिरोया है I कविता मनुष्य के मनप्राण की स्वच्छंदता में जीवन के आनंद और उल्लास को अपने फलक पर समेटती है और इसमें 
नानाविध प्रसंग कविता में सूक्ष्म
स्थूल रूप में जीवन की विवेचना में उपस्थित होकर कविता के विन्यास को तय करते हैं !


 रश्मिलता मिश्रा की कविताओं में परंपरा और आधुनिकता का समन्वय है ! हिंदी कविता में असंख्य प्रकार के देवी देवताओं की स्तुति , प्रार्थना के रूप में रची गयी भक्तिकाल के विभिन्न कवियों की कविताओं में जीवन के समस्त भावों की सुंदर व्यंजना हुई है और राम - कृष्ण की अर्चना , उपासना के  रूप में लिखे गये काव्य के आधार पर यहाँ कई काव्यधाराओं का भी विकास हुआ .

 प्रस्तुत काव्य संग्रह में संकलित  धार्मिक - आध्यात्मिक भावबोध की कविताओं की रचना प्रक्रिया को इस प्रसंग में देखा - समझा जा सकता है और यहाँ कवयित्री की जीवन चेतना में रचे बसे भारतीय नारी के  परंपरागत संस्कारों की सुंदर झलक भी इस संग्रह की तमाम कविताओं में व्याप्त दिखायी देती हैं !

हिंदी कविता में असंख्य प्रकार के देवी देवताओं की स्तुति ,
प्रार्थना के रूप में रची गयी 
 कविताओं में जीवन के समस्त भावों की सुंदर व्यंजना हुई है और राम - कृष्ण और ईश्वर के निराकार रूप की उपासना के रूप में लिखे गये काव्य के आधार पर यहाँ कई काव्यधाराओं का भी विकास हुआ .

मनुष्य के जीवन में नाना  प्रकार के देवी - देवता यहाँ लोक आस्था समाज और जनजीवन में विभिन्न सकारात्मक  प्रवृत्तियों के समावेश से  मनुष्य की आत्मा में दिव्यता का संचार करते हैं और अनादि काल से इन देवी देवताओं के स्मरण और उनकी कृपा से मनुष्य का  जीवन कल्याण के मार्ग पर अग्रसर होता रहा है ! इस संग्रह में रश्मिलता मिश्रा की कविताओं में जीवनानुभूतियों का 
बेहद सूक्ष्म स्थूल धरातल इस संदर्भ में उदघाटित हुआ है और 
ईश्वर की सान्निध्यता में यहां जीवन असीम सुख शांति की कामना से परिपूर्ण प्रतीत होता है !

 भगवान गणेश को देवता के रूप में विघ्न विनाशक और मंगलदाता कहा जाता है ! वह हमारे जीवन में अपनी कृपा से समस्त सांसारिक कष्टों का शमन करते हैं और सुख संतोष से मन को भर देते हैं ! हिंदू धार्मिक अनुष्ठानों में सबसे पहले गणेश की पूजा की जाती है और इस काव्य संग्रह में भी कवयित्री सबसे पहले गणेश स्तवन से काव्य सृजन को शुरू करके  संसार में सबके कल्याण की कामना करती है ! सचमुच , लोकमंगल का भाव ही सदियों से काव्य को जीवन का नैसर्गिक स्वर प्रदान करता है और इस कविता संग्रह में गणेश वंदना के रूप में लिखी गयीं कविताओं में  गणेश विनायक रूप में अपने भक्तों के जीवन
से सारी आपदाओं , कष्ट , बाधाओं का निवारण करते प्रतीत होते हैं !

 '' मोहन बजाये बंसी सुन । 
तब राधा निकल पड़े झट से ॥
 मचल गया मन देखो अब ।
 किये दरस फिर घुँघट पट से ॥ डाले झूला जब मोहन । 
आये राधा तब झुलन रे ॥ मदमाता आये फागुन । 
तब रंग बनाये फुलन रे ॥ अलबेला सलोना गिरधर ! 
रास रचे बृज में रसिया रे ॥ 
पूनम रात को वृंदावन ।
 दौड़ा आये मन बसिया रे ॥  बजाई जब बंसी श्याम । 
सारा सुख सखियां वारी रे ॥ देवलोक में भी हलचल । 
शिव तो बन आये नारी रे ॥" ' (  मेरा मोहन )

 ' ' गणेश उदार , सहाय अपार ।
 महेश कृपाल , रमेश दयाल ॥
 बहे सर गंग , भाल धर चंद । भभूत रमाय , त्रिशूल धराय ॥ चले अब आप , पड़े पदचाप ! 
गले रख नाग , लिखें जग भाग ॥ सही अब लोग , लगाकर भोग । चढ़ा अब भंग , करें जय संग ॥ ' '  
 
प्रस्तुत कविताओं में प्रवाहित धार्मिक - आध्यात्मिक भावों की को इस प्रसंग में देखा - समझा जा सकता है और यहाँ कवयित्री की जीवन चेतना में रचे बसे भारतीय नारी के  परंपरागत संस्कारों की सुंदर झलक भी इस संग्रह की तमाम कविताओं में व्याप्त दिखायी देती है !

 हिंदू धर्म में नाना  प्रकार के देवी देवता यहाँ लोक , समाज और जीवन की विभिन्न सकारात्मक  प्रवृत्तियों का समावेश मनुष्य की आत्मा में करते हैं और अनादि काल से इन देवी देवताओं के स्मरण और उनकी कृपा से मनुष्य का  जीवन कल्याण के मार्ग पर अग्रसर होता है !

 भगवान गणेश को देवता के रूप में विघ्न विनाशक और मंगलदाता कहा जाता है ! वह हमारे जीवन में अपनी कृपा से समस्त सांसारिक कष्टों का शमन करते हैं और सुख संतोष से मन को भर देते हैं ! हिंदू धार्मिक अनुष्ठानों में सबसे पहले गणेश की पूजा की जाती है और इस काव्य संग्रह में भी कवयित्री सबसे पहले गणेश स्तवन से काव्य सृजन को शुरू करके  संसार में सबके कल्याण की कामना करती है ! सचमुच , लोकमंगल का भाव ही सदियों से काव्य को जीवन का नैसर्गिक स्वर प्रदान करता है और इस कविता संग्रह में गणेश वंदना के रूप में लिखी गयीं कविताओं में गणेश विनायक रूप में अपने भक्तों के जीवन
से सारी आपदाओं , कष्ट , बाधाओं का निवारण करते प्रतीत होते हैं !




            राजीव कुमार झा

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