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सद्‌गुरुदेव श्री सतपाल जी महाराज जी के आदेसानुसार खगड़िया में भव्य पदयात्रा के साथ-साथ माँ राजेश्वरी प्याऊ का आयोजन का सुभारंभ फीता काट कर किया गया


सद्‌गुरुदेव श्री सतपाल जी महाराज जी के आदेसानुसार  खगड़िया में भव्य पदयात्रा के साथ-साथ माँ राजेश्वरी प्याऊ का आयोजन का सुभारंभ फीता काट कर किया गया

मानव उत्थान सेवा समिति, खगड़िया आश्रम के प्रभारी महात्मा बागिशा बाई जी के अध्यक्षता में एवं बिहार के प्रभारी महात्मा द्वेता बाईजी, महात्मा सत्यावती बाईजी, इंद्रा बाई जी के द्वारा खगड़िया के रेलवे स्टेशन के बाहर सैकड़ो लोगो को मीठा शरबत पानी पिलाया गया

महात्मा बागिशा बाई जी , महात्मा द्वेता बाईजी, महात्मा सत्यावती बाईजी, इंद्रा बाई जी के द्वारा कहा गया की संस्थान और संस्थान के सदस्य की मदद से की जाती है लोगो की सेवा बिहार सरकार से नही मिल रही कोई भी आर्थिक मदद

आज दिनांक 10 जून 2022 के दिन सद्‌गुरुदेव श्री सतपाल जी महाराज जी के असीम अनुकम्पा और प्रेरणा से गंगा दशहरा के उप्लक्षय में जिला खगड़िया, बिहार के आश्रम द्वारा खगड़िया में भव्य पदयात्रा के साथ-साथ माँ राजेश्वरी प्याऊ का आयोजन खगड़िया रेलवेस्टेशन के प्राँगण में मानव उत्थान सेवा समिति, खगड़िया आश्रम के प्रभारी महात्मा बागिशा बाई जी के अध्यक्षता में 

एवं बिहार के प्रभारी महात्मा द्वेता बाईजी, महात्मा सत्यावती बाईजी, इंद्रा बाई जी की उपस्थिति में तथा मानव सेवा दल के सदश्य, युवा संघ के सदश्य एवं मानव उत्थान सेवा समिति के कार्यकर्ता गण, प्रेमी गण के सहयोग से द्वारा उपस्थिति मे हुआ।

 सैकड़ों की भीड़ में जुड़े सभी लोगो को संस्थान के द्वारा ज्ञान और धार्मिक शिक्षा और मानवता में एकता बनाए रखने का संदेश भी दी गई ।



सहरसा से बलराम कुमार की खास रिपोर्ट

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साहित्य संसार: साक्षात्कार

कवि और कलाकार अशोक धीवर "जलक्षत्री "छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले में  स्थित तुलसी ( तिलदा नेवरा ) के निवासी हैं।   इन्होंने  दहेज प्रथा और समाज में कन्याओं की दशा के अलावा अन्य सामाजिक बुराइयों के बारे में पुस्तक लेखन और संपादन का काम किया है। मूर्तिकला में भी इनकी रुचि है।  यहां प्रस्तुत है ,  प्रश्न:आप अपने घर परिवार और शिक्षा दीक्षा के बारे में बताएं? *उत्तर:मेरा बचपन बहुत ही गरीबी में बिता। मेरे माता-पिता ने अपने नि:संतान चाचा- चाची के मांगने पर मुझे दान दे दिए थे। अर्थात् उन लोगों ने गोद लेकर मेरा परवरिश किया। तब से वे लोग मेरे माता-पिता और मैं उनका दत्तक पुत्र बना। इसलिए बचपन से ही मैंने ठान लिया था कि, जिसने अपने कलेजे के टुकड़े का दान कर दिया। उनका भी मान बढ़ाना है, सेवा करना है तथा जिन्होंने अपने पेट का कौर बचाकर मेरा पेट भरा, उनका भी नाम तथा मान बढ़ाना है। सेवा करना है। गरीबी के कारण दसवीं तक पढ़ पाया था। व्यावसायिक पाठ्यक्रम के तहत बारहवीं उत्तीर्ण किया। उसी समय मैंने सोच लिया था कि आगे बढ़ने के लिए कम पढ़ाई को बाधक बनने नहीं दूंगा और जो काम उच्च शिक्षा प्र