बाबा_का_बाकस
तस्वीर को ध्यान से देखिए जिन लोगों का कनेक्शन गांव से है वह इस तस्वीर में नजर आने वाली खास वस्तु को जरूर पहचानते होंगे
आइए अब हम आपको बताते हैं इससे जुड़ी स्मृतियों को आम बोलचाल की भाषा में लकड़ी के इस बड़े बक्से को संदूक या बाकस कहा जाता है। 90 के दशक तक ग्रामीण इलाकों की यही तिजोरी हुआ करती थी लकड़ी का मजबूत यह बक्सा सदियों से विरासत को संजोने के काम आता था। इस बाकस की चाबी घर के मुखिया के पास होती थी इसके अंदर खाने पीने की चीजों के के अलावा बर्तन गहने जमीन जायदाद के कागजात रूपए पैसे रखे होते थे। मजबूत इतना रात में बच्चे इसको चौकी के रूप में इस्तेमाल करते हुए सो भी जाते थे। शादी ब्याह में यह लकड़ी का बड़ा बाकस लोगों को दहेज में मिलता था जिसका जितना बड़ा बाकस उसका उतना बड़ा रुतबा साथ में जुड़ी कई कथा कहानियां इस के ऊपर उकेरी गई चित्रकला भी अनूठी थी जो ग्रामीण कलाकारों ने अपने हुनर से उकेरा था। बचपन में बालमन इसी लकड़ी के बड़े बाकस के इर्द-गिर्द घूमा करता था लगता था इसके अंदर क्या-क्या बंद होगा इस पिटारे के खुलने के बाद मेवा मिष्ठान से लेकर क्या-क्या चीज है
खाने को मिलेंगे घर का मुखिया घर का विरासत संस्कार इज्जत सब कुछ इसी बक्से में कैद रखता था जमाने में आमदनी कम थी पर सुख ज्यादा था संतोष लोगों के अंदर था परस्पर सहयोग की भावना थी दिखावा कम था। अगर बेटी की शादी होती थी तो पूरे गांव में उत्सव होता था लोग शहरों को छोड़कर गांव में लौट आते थे दुख में भी यही भावना रहती थी किसी की मौत होने पर पूरे गांव में चूल्हा नहीं जलता था lसमय के साथ बहुत कुछ बदला और हम अपने विरासत से दूर होते चले गए। लकड़ी का यह मजबूत तिजोरी नुमा बक्सा अब शायद ही आपको कहीं देखने को मिले टाइल्स मार्बल वाले घरों में अब इसके रखने के लिए जगह नहीं होती है कभी कभार एकाध कोई ऐसा शौकीन आदमी मिले जो अपनी इस विरासत को संजोकर रखे हुए मिले जीवन से जुड़ी कई सारी ऐसी स्मृतियां अब विस्मृत होने के कगार पर है। आधुनिकता की चकाचौंध से ज्यादा लोगों की बदली विचारधारा ने खुद को अपनी जड़ों अपनी मिट्टी अपनी विरासत अपने गांव से दूर कर दिया। जिनकी जड़ें मिट्टी से जुड़ी होती हैं वह वापस लौटना चाहते हैं पर मजबूरी की बेरिया वापस लौटने नहीं देती मन में कसक होती है जुबान खामोश होती है।
अनूप नारायण सिंह
सहरसा से बलराम कुमार 9472535383
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