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बिहार के बड़हिया अंचल में गाये जाने वाले होली के गीतों का संग्रहणीय संकलन

पुस्तक समीक्षा : लोक साहित्य संस्कृति 

Wish you a happy Holi
फाग - धमार होली गीत
संकलन कर्ता: रामजी प्रसाद सिंह
बड़हिया ( श्रीकंठ ) वाहापर
मूल्य ₹ 60/-
जिला - लखीसराय ( बिहार)
पिन 811302
मोबाइल 8678858284


बिहार के बड़हिया अंचल में गाये जाने वाले होली के गीतों का संग्रहणीय संकलन 

बिहार के लखीसराय जिले में स्थित बड़हिया का अंचल गंगातट
पर स्थित मंदिरों ठाकुरबाड़ियों  शिवालयों बाग बगीचों और टाल के खेत खलिहानों के लिए सारे देश में प्रसिद्ध रहा है और यहां के जनजीवन की छटा भी निराली है।
सभी त्योहारों की तरह होली का त्योहार भी बड़हिया में काफी काल से धूमधाम से मनाया जाता रहा है। बिहार में होली गायन की कई शैलियां प्रचलित है और इनमें
राज्य के मगही बोली के क्षेत्रांतर्गत स्थित इस गांव नगर में लटका शैली में गाये जाने वाले होली के गीतों में जीवन के समस्त भावों की अभिव्यंजना हुई है और 
यहां के जनजीवन का सहज स्वर इनमें प्रवाहित होता आज भी सबके मन को अभिभूत करता है। 
बड़हिया में होली के गीतों की गायन परंपरा अब खत्म भी हो रही है और देश की लोक-संस्कृति के संरक्षण में संलग्न संस्थाओं को इस दिशा में काम भी करना चाहिए ताकि लोकगीत संगीत की परंपरा का यह नैसर्गिक जीवनस्वर अपने ताल लय और सुर में आने वाली पीढ़ियों को भी


आनंदित करता रहे । बड़हिया बिहार का काफी बड़ा गांव है और इसका एक टोला जो श्रीकंठ ( वाहापर ) के नाम से जाना जाता है यहां के लटका गायक यानी होली गीत गायक रामजी प्रसाद सिंह का नाम इस अंचल में सारे लोगों के बीच सुपरिचित है। हाल ही में रामजी प्रसाद सिंह ने बड़हिया में गाये जाने वाले होली के गीतों को संग्रहित करके इसका एक सुंदर संकलन प्रकाशित कराया है। यह सबके लिए पठनीय और हर घर आंगन के लिए संग्रहणीय है। रामजी प्रसाद सिंह के द्वारा संकलित होली के इन गीतों में लोकजीवन और संस्कृति की सुंदरता सहजता से समाई है और इनमें बड़हिया की कुलदेवी बालात्रिपुर सुंदरी के पावन स्मरण के साथ यहां के विराजमान गंगा माता की स्तुति के अलावा महारानी जगदंबा के अनन्य साधक और धर्मसेवी श्रीधरबाबा की स्तुति में रचे गये गीतों को पढ़ना एक बेहद सुंदर और सुखद अनुभव प्रतीत होता है। 

" सुमिरौ आदिशक्ति महारानी को, 
अद्भुत लीला मात भवानी
तुमरो सब जग जानी।
ग्राम बड़हिया के अंदर नीज,
आपन आसन ठानी।
प्रेम से सुमिरौ सिरधर बाबा के
जो है भला वह जो है,
सुमिरौ आदिशक्ति महारानी को।
अति विचित्र मंडप है माता के,
शोभा जात न बखानी।
नर नारी नित दर्शन कर 
सुख पावत भला वह सुख पावत
सुख पावत है मनमानी,
सुमिरौ आदिशक्ति महारानी को
अपरांपार तुम्हारौ महिमा है,
को कर सकै बखानी ।
दूध मिश्री नित भोग लगत है,
सदा करौ भला वह सदा करो
सदा करहूं वह कल्याणी,
सुमिरौ आदिशक्ति महारानी को।"

इस प्रकार ग्राम कुलदेवी बाला त्रिपुरसुंदरी की महिमा के स्तवन उनकी अभ्यर्थना के रूप में लिखे गये बड़हिया के होली के गीतों में रामायण - महाभारत के कथा प्रसंगों पर आधारित गीतों में धर्म कर्म सुख सदाचार प्रकृति परिवेश जनजीवन समाज संस्कृति से जुड़ी बातों की चर्चा में हमारे हृदय
की तमाम बातें सहजता से समाई हैं इसीलिए रामजी प्रसाद सिंह के द्वारा संकलित बड़हिया के होली के इन गीतों से परिचित होना बेहद सुखद प्रतीत होता है।

" अद्भुत माता आदि भवानी, 
  तुम हो सब जग जानी।
हे माता तोरा सुमरी के
फौदा उठावौ सदा भला वह सदा।
वह सदा करो कल्याणी
सुमिरौ आदिशक्ति महारानी को
है ग्राम बड़हिया के अंदर में,
आपनौ आसन ठानी
पहले सुमरो सिरधर बाबा को,
जो है भला वह जो है
जो है बीच अनुआनी,
सुमिरौ आदिशक्ति महारानी को।
महिमा तेरो अजब है माता
को कर सकय बखानी
तुलसीदास वलियास चरण को
संतन भला वह संतन
वह संतन के सुखदानी,
सुमिरौ आदिशक्ति को। "
होली का त्योहार वसंत ऋतु में मनाया जाता है और यह मास नवजीवन का प्रतीक कहा जाता है। बड़हिया के होली गीत अपनी भावाभिव्यंजना में धर्म और कर्म के धरातल पर भारत की भूमि पर सनातन संस्कृति के सतत उत्थान की कथा के सदियों पुरानी गीत गान की परंपरा का बखान करते हैं और छत्तीसगढ़ की लोक गायन की शैली पंडवानी की तरह यहां के लटका गायकों की पहचान भी जरूरी है और अब जैसा कि रामजी प्रसाद सिंह ने इस पुस्तक की भूमिका में बताया है कि बड़हिया में होली के अवसर पर वसंत पंचमी के बाद यहां शुरू होने वाला लटका गायन धीरे - धीरे खत्म होता जा रहा है और गांव में नयी पीढ़ी के लोग प्रोत्साहन की कमी से लटका गायन से विमुख होते जा रहे हैं। इस दिशा में दूरदर्शन बिहार और आकाशवाणी पटना को होली के अवसर पर लटका गायन का विशेष आयोजन करना चाहिए। नयी दिल्ली के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र को भी लटका गायन की परंपरा के संरक्षण के लिए विशेष योजना बनानी चाहिए।

 हमारे देश के साहित्य संस्कृति और कला में यहां के समग्र जीवन की सुंदर झलक समाई है और यहां प्रचलित लोकगीतों का उल्लेख इस प्रसंग में महत्वपूर्ण है। इनमें ग्रामीण जनजीवन का सुख - दुख जीवन के प्रति लोगों का राग विराग यह सब अत्यंत सहजता से प्रकट होकर सबको जीवन के संघर्ष पथ पर अग्रसर करता रहा है। बड़हिया के लोकगीतों की चर्चा इस प्रसंग में समीचीन है।

" आई आषाढ़ घटा घन गरजै ,
सावन गरूर गंभीरा।
हां हां सावन गरूर गंभीरा
सावन रिमक झिमक बूंद बरसै ।
भर गये भला अब भर गये
भर गये चौहुं दीश निरा।
साजन बिन कौन हरे मोर पीड़ा।
क्वार मास में जल थल बाढ़ै
कार्तिक भयो बहु पीड़ा,
हां हां कार्तिक भयो बहु पीड़ा।
अगहन मदन सतावन लागै,
कांपै भला अब कांपै,
कांपै सकल शरीरा,
सजन बिन कौन हरै मोर पीड़ा।
पूस मास पाल पड़त है,
माघ धरै कछु धीरा,
फागुन रंगा उड़ै गलियन में।
कापर भला हम कापर , 
कापर छोड़ौं अबीरा।
सजन बिन कौन हरै मोर पीड़ा।
चैत मास वन फूलै चमेली, 
वैशाख घरै कछु घीड़ा
जेठ मास घर आयो,
आयो भला वह अब आयो,
आन मिलै युदबीरा
सजन बिन कौन हरै मोर पीड़ा। "
बड़हिया एक ग्रामीण अंचल है और यहां की प्रकृति में तमाम ऋतुओं का सौंदर्य समाया है इसलिए यहां के होली गीतों में कृषक समाज के मनोभावों की सुंदर अभिव्यक्ति समाई हुई है।
इसमें विभिन्न ऋतुओं की आवाजाही के बीच नायक - नायिका के प्रेम के भावों का प्रकटन  जीवन में संयोग - वियोग के भावों के बीच श्रृंगार रस की सरसता से सबके मन को अभिभूत कर देता है। राधा और कृष्ण के अलावा राम -सीता की होली के अलावा बड़हिया में शंकर और पार्वती की गाये जाने वाले होली के गीत अपने इसी गुण वैशिष्ट्य और ओज  से सबके मनप्राण में नवजीवन का संचार करते प्रतीत होते हैं इसलिए इनको भारतीय लोकगायन में महत्वपूर्ण कहा जा सकता है -

" ब्रज में फाग रचैय बनवारी,
ब्रज में फाग रचैय बनवारी।
ब्रज बणिता सब संग लियो है,
कर शोभै पिचकारी।
हां हां कर शोभैय पिचकारी ,
सखिया संग में फाग रचो है।
चन्द्रा भला वह चन्द्रा,
चन्द्र बलि ललकारी सखिया
ब्रज में फाग रचैय बनवारी। "

हिन्दू धर्म के त्योहार विभिन्न देवी देवताओं की पूजा अर्चना से जुड़े हैं और होली के दिन जो गीत गाये जाते हैं, इन गीतों में सारे देवी देवताओं के स्मरण की परंपरा रही है और इनमें उनकी महिमा का गान किया जाता है। रामजी प्रसाद सिंह के द्वारा संकलित बिहार के  लटका शैली के इन होली गीतों में शैव शाक्त और वैष्णव मत के विभिन्न देवी देवताओं के तेज बल का स्मरण करते हुए उनसे जीवन के कल्याण की कामना की गयी है। बड़हिया वासियों के जीवन में गंगाजी का महात्म्य सर्वविदित रहा है और यहां शीत ऋतु में उनके जल से सिंचित टाल के
खेतों में जिन दलहन फसलों की
खेती होती है उसे गंगाजी के पावन प्रसाद के रूप में देखा जाता है। बड़हिया के होली के गीतों में गायक हिन्दू धर्मशास्त्रों में
वर्णित कथाओं निरंतर स्मरण करते दिखाई देते हैं और गंगा अवतरण की कथा के नायक महाराज भगीरथ से लेकर रामायण महाभारत के राम -लक्ष्मण - सीता हनुमान, की कथा के साथ,  रावण - कुंभकर्ण - विभीषण और महाभारत के कृष्ण अर्जुन - दुर्योधन, भीम की कथाओं के गायन वाचन के बीच 
हमारे सदियों पुराने समाज संस्कृति के रोचक प्रसंग इन लटका गीतों में हमारी जीवन चेतना को ऊर्जस्वित करते प्रतीत होते हैं।

 होली उल्लास उमंग का त्योहार है और यह त्योहार अधर्म पर धर्म और असत्य पर सत्य की विजय की खुशी में मनाया जाता है। इस दिन गाये जाने वाले होली के गीतों में पौराणिक कथाओं के विविध प्रसंगों के माध्यम से हम अपनी सभ्यता और संस्कृति के जीवन मूल्यों और यहां के आदर्शों का बखान करते हैं। बड़हिया की होली के गीतों की
विषयवस्तु में यह  तत्व प्रमुखता से दृष्टिगोचर होता है -

" राजन मानहुं बचन हमरों,
राजन मानहुं बचन हमारो ।
पूरब - पश्चिम उत्तर - दक्षिण
चहुंदिश राज तिहारो,
पांच ग्राम पांडव को दे दो।
होइहै भला वह होईहै,
होईहैं  सुयश तुम्हारो ।
राजन मानहुं वचन हमारो।
पहले‌ तो हस्तिनापुर दे दिजैय
नेम धर्म को काशी दे दिजैय ।
कनवज भला वह कनवज
कनवज शहर बजारो।
राजन मानहुं वचन हमारो।
 शकुनि कर्ण और दुर्योधन,
सव मिल मंत्र विचारो,
राजनीति के मर्म न जानें
गौवन भला वह गौवन,
वह गौवन को चरावौं
राजन मानहुं वचन हमारो।
क्रोधित हो बचन कहैय दुर्योधन,
सुनियों कृष्ण मुरारौ
हां हां सुनियों कृष्ण मुरारौं,
दे न सकैय हम सुई अग्रभर।
चाहे भला वह चाहे,
चाहे चलैय दुधारो।
राजन मानहुं बचन हमारो।
अंधा के अंध रिखि नहीं सुझैय,
बोलैय बचन खराड़ो ।
हां हां बोलैय बचन खराड़ो।
सुरश्याम समरभूमि में।
होईहैं भला वह होईहैं, 
होईहैं निपट निवारो।
राजन मानहुं बचन हमारो ।"

समीक्षक: राजीव कुमार झा
मोबाइल: 8969811518

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