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जीवन के वर्तमान सवालों को लेकर समाज के साथ संवाद रचती कहानियां!

साहित्य लेखन 

पुस्तक समीक्षा

चौखट की ओट से
(कहानी संग्रह)
लेखिका : सुरंजना पांडेय 
तनीषा प्रकाशन 
बिंदुखत्ता, लालकुआं 
नैनीताल, उत्तराखंड 


जीवन के वर्तमान  सवालों को लेकर समाज के साथ संवाद रचती कहानियां!



सुरंजना पांडेय का नाम समकालीन हिंदी कहानी लेखन में
सुपरिचित है और उनकी कहानियों में मौजूदा दौर के बदलते परिवेश में जिंदगी की नयी रंगतों के बीच समाज की
नयी - पुरानी बातों की चर्चा को खास तौर पर विषयवस्तु के रूप में यहां उपस्थित देखा जा सकता है। इस दृष्टि से उनके नये कहानी संग्रह "चौखट की ओट से " में संकलित तमाम कहानियों को आद्योपांत पढ़ना एक दिलचस्प अनुभव  साबित होता है। साहित्य में कहानी के
माध्यम से जीवन की सहज सार्थक विवेचना सामने आती है और इस
तथ्य के मद्देनजर सुरंजना पांडेय की कहानियों में प्रेमचंद की तरह से ही समाज की  तमाम छोटी - बड़ी घटनाओं के माध्यम से घर परिवार आंगन चौखट से लेकर इससे बाहर के
विस्तृत संसार में 
  मनुष्य के जीवन में घटित होने
वाली समसामयिक विषयों की तमाम बातों को जानने - समझने की चेष्टा शिद्दत से समाहित दिखाई देती है। अपनी इन कहानियों में लेखिका आज के समय में महिलाओं के जीवन से जुड़ी बातों
की जांच पड़ताल में खास तौर पर संलग्न प्रतीत होती है और इस बात को इस संग्रह की पहली कहानी  "साधना " को पढ़ कर ठीक से जाना समझा जा सकता है। इसमें आधुनिकता और घर परिवार में लाड़-प्यार की ओट में रसोईघर के पाककर्म से दूर रहने वाली आज की लड़कियों के सामने विवाहोपरांत उपस्थित होने वाली कठिनाईयों को लेखिका ने कहानी की विषयवस्तु में यत्न से उठाया है। इसमें कहानी की नायिका नयना को शादी के बाद अपनी ससुराल में खाना पकाने के बाद इसके ठीक से तैयार नहीं होने के कारण अक्सर सास की नाराज़गी का सामना करना पड़ता है लेकिन आगे कहानी में अपनी ननद के परामर्श से वह रसोईघर में ससुराल के इन लोगों से खाना पकाने का ज्ञान धीरे - धीरे हासिल करती है और खुद को ससुराल के जीवन में संयोजित कर लेती है। सुरंजना पांडेय की इस संकलन में संग्रहित सारी कहानियां अपने अर्थ और आशय में इस स्तर पर बेहद पठनीय हैं और इनमें जीवन के गहरे अर्थों का प्रतिपादन हुआ है।
सुरंजना पांडेय की ज्यादातर कहानियां आकार प्रकार में छोटी होती हैं लेकिन इनकी विषय वस्तु में समाज के बड़े और ज्वलंत मुद्दों का समावेश होता है और लेखिका मानवीय धरातल पर अक्सर अपनी कहानियों में समाज की विसंगतियों, घर आंगन से लेकर दफ्तर और अन्य तमाम जगहों पर बदलते परिवेश में जीवन की कठिनाइयों से जूझती महिलाओं की व्यथा कथा के अलावा समाज में गरीबी और अन्य समस्याओं के भंवर जाल में आम आदमी के भटकाव से जुड़े 
प्रसंगों को विचारार्थ प्रस्तुत करती
प्रतीत होती है और इसे इनके लेखन का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष भी कहा जा सकता है। 

इस कथा संग्रह की एक कहानी ' संगत का असर ' गरीबी से उपजी विवशता के कारण गांव के लोगों 
 के शहरों में विस्थापन और यहां उनके जीवन की त्रासदियों का सजीवता से बयान करती है। इसमें कहानी का मुख्य पात्र निशांत घर से रोजी-रोटी की तलाश में मुंबई आने के बाद यहां किसी फैक्ट्री में कोई छोटी नौकरी पकड़ लेता है लेकिन वह धीरे - धीरे यहां शराब और जुए की लत का शिकार हो जाता है। मुंबई में बदहाली की परिस्थितियों में चोरी की लत भी उसे लग जाती है और उसे पुलिस गिरफ्तार कर लेती है। 
इस कहानी के अंत में अपने दूर दराज के गांव से मुंबई आकर उसके पिता यहां कोर्ट ने उसे जेल से छुड़ाने के यत्न में जुटे दिखाई देते हैं। सुरंजना पांडेय की कहानियों में घटनाओं का समावेश बेहद सहजता से होता है और इनमें भाव विचार के तालमेल से लेखिका मुख्यत: उद्देश्य के रूप में समाज के लिए सार्थक और श्रेयस्कर प्रसंगों का प्रतिपादन करती दिखाई देती है। '
इसी प्रकार' मन की ठसक ' शीर्षक कहानी में लेखिका ने एक बेहद अलक्षित और मार्मिक प्रसंग का जिक्र इसके कथानक में किया है और इसमें राघवेन्द्र नामक एक अत्यंत दीन हीन गरीब छात्र ट्यूशन पढ़ने के दौरान गांव में काफी बड़े हादसे से तब गुजरता
है जब  दूसरे छात्रों की तरह वह 
यहां ट्यूशन की फीस जमा नहीं कर पाता है और इसके दंडस्वरूप  राघवेन्द्र को उसके सहपाठी अपना थूक चटवाना चाहते हैं। जीवन की ऐसी परिस्थितियों में अपने गांव के इस परिवेश से हताश होकर वह पढ़ाई के लिए अपने मामा के पास चला जाता है और आगे काफी अच्छी नौकरी पाने में सफल होता है। सुरंजना पांडेय की कहानियों में समाज और मनुष्य के जीवन की सम विषम परिस्थितियों के प्रति सकारात्मक अभिप्रायों का प्रतिपादन हुआ है और इस दृष्टि से सुरंजना पांडेय की कहानियां पठनीयता में बेहद प्रेरणाप्रद कही जा सकती हैं।इसी प्रकार ' शिक्षा की रोशनी ' कहानी में पिता की मृत्यु के बाद घर में दादा के साथ जीवनयापन करके पढ़ाई - लिखाई में संलग्न बालक सोनू
घर का खर्चा जुटाने के लिए शाम में पास के स्टेशन पर केतली में चाय भरकर यहां उसे बेचता दिखाई देता है और विद्यालय में निरीक्षण के लिए पधारे जिलाधीश के द्वारा कक्षा में छात्रों से पूछे गये प्रश्नों में सबसे ज्यादा सही जवाब देकर सबको हतप्रभ कर देता है।

 सुरंजना पांडेय के इस कहानी संग्रह में विविध विषयवस्तु और भावबोध की कहानियों का समावेश है और इसी संदर्भ में ' मत छीनो इनकी आजादी ' शीर्षक कहानी में प्राकृतिक परिवेश में वन्य प्राणियों के जीवन
की स्वतंत्रता का संदेश कहानीकार ने दिया है। इस कहानी में वनभ्रमण के दौरान
सोनू नामक युवक किसी पेड़ की छाया में आराम करने के दौरान जब वहां फुदक रहे एक खरगोश को पकड़कर उसे पालने के लिए घर लाना चाहता है तो उसका दोस्त नवीन उसे ऐसा करने से मना करता है और इस प्रकार यह कहानी वन्य परिवेश‌ को लेकर स्वायत्तता के भाव का प्रतिपादन करती है।
 ' बहु बनी बेटी ' कारगिल युद्ध की पृष्ठभूमि पर आधारित कहानी है और इसमें प्रेरणा नामक नवविवाहिता का पति मनोज युद्ध भूमि में वीरगति को प्राप्त करता है और उसकी स्मृति में प्रेरणा पति के देहावसान के बाद ससुराल में सास - ससुर की सेवा में ही जीवन की व्यतीत करने का फैसला करती दिखाई देती है। वह मेहनत से शिक्षिका की नौकरी भी हासिल करके आत्मनिर्भर हो जाती है। इसी प्रकार ' बहरी काकी ' शीर्षक कहानी में लेखिका ने गांवों के सामाजिक परिवेश की कई विसंगतियों को चित्रित किया है। इसमें कहानी की मुख्य पात्र बहरी
काकी बाल्यकाल में ही जायदाद को लेकर पिता और चाचा के आपसी
झगड़े के दौरान बीच में आ जाने से अनजाने थप्पड़ की चोट से अपनी श्रवण क्षमता खो बैठती है और परिवार के लोग बड़ी होने पर काफी उम्रदराज और शराबी व्यक्ति से उसका विवाह कर देते हैं। वह बहुत जल्द विधवा भी हो जाती है और ससुराल के लोग भी उसे घर से निकाल देते हैं। नैहर में
पिता की मृत्यु के बाद भाइयों ने भी उसे घर से निकाल दिया है और वह गांव में मुखिया के यहां चौका बर्तन करके जीवनयापन करती है। सुरंजना पांडेय इन 
कहानियों में समाज में महिलाओं के जीवन संघर्ष के अलावा समाज में उनके जीवन के यथार्थ को भली-भांति देखने जानने की चेष्टा खास तौर पर की गयी है और इसमें कथा फलक पर संवेदना और अनुभूतियों की जीवंतता विशेष रूप से उजागर हुई है। समाज के बदलते परिवेश में कहानी अपनी विषयवस्तु में निरंतर नयी जीवनधर्मिता के भाव को प्रकट करती है और इसी प्रसंग में अपनी सहज भाव भाषा से सुरंजना पांडेय की कहानियों में
एक नयी प्रकार की पठनीयता का समावेश भी होता दिखाई देता है। इनकी ज्यादातर कहानियां आकार प्रकार में छोटी हैं लेकिन इनमें वर्तमान समाज संस्कृति को लेकर जीवन चिंतन का सार समाहित है और इसे इस कहानी संग्रह की प्रमुख विशेषता के रूप में देखा जाना चाहिए।

 वर्तमान समय में संयुक्त परिवार प्रथा का सर्वत्र विघटन हो रहा है और इसके बावजूद बहु के रूप में एकल परिवारों से संयुक्त परिवारों में लड़कियों की शादी समाज में अब भी होती दिखाई देती है। इसके साथ ही समाज में ढेर सारी लड़कियां यहां बहु के रूप में आकर पारिवारिक सामंजस्य की समस्या से भी जूझती कई प्रकार की समस्या से घिर जाती हैं। यह हमारे समाज में आज महिलाओं के जीवन का एक रोचक अध्याय है।  इस संग्रह की एक कहानी ' अदहन ' में लेखिका ने नियति नामक लड़की की कथा के माध्यम से उपरोक्त प्रसंग को जीवंतता से उठाया है।

 आज के दौर में शादी विवाह घर आंगन के बीच लोगों की जिंदगी के बीच कायम होने वाली इन नयी परिस्थितियों के दूसरे पहलुओं से इस कहानी संग्रह की एक अन्य कहानी ' तमाशा ' को पढ़ते हुए भी अवगत होने का मौका मिलता है और इसमें काफी
शौक से अपने बड़े बेटे निशांत की 
शादी किसी आधुनिक संस्कारों की लड़की से करने वाली सुषमा जी को विवाहोपरांत अपने घर के परंपरागत परिवेश में बहु के जीवनशैली की तमाम बातें दिनभर शापिंग, पहनावा ओढ़ावा , घर - बाहर में उसका अपने ढंग से आना - जाना, उठना- बैठना यह सब पसंद नहीं आता है और यहां वह बेटे से बहु की शिकायत करती देखी जाती हैं। इस प्रकार यह कहानी भी समाज के नये परिवेश‌ में मानवीय रिश्तों के भीतर उभरते तनाव और घुटन के भीतर से उभरते क्षोभ के आसपास केन्द्रित प्रतीत होती है।

सुरंजना पांडेय की कहानियों में मौजूदा दौर के बदलते परिवेश में जिंदगी की नयी रंगतों के बीच समाज की
नयी - पुरानी बातों की चर्चा को खास तौर पर कथा प्रसंग के रूप में यहां उपस्थित देखा जा सकता है। साहित्य में कहानी को जीवन की सहज सार्थक विवेचना की विधा माना जाता है और इस
तथ्य के मद्देनजर सुरंजना पांडेय की कहानियों में समाज की  तमाम छोटी - बड़ी घटनाओं के माध्यम से घर परिवार आंगन चौखट से लेकर इससे बाहर के
विस्तृत संसार में 
  मनुष्य के जीवन से जुड़ी तमाम बातों को जानने - समझने की चेष्टा शिद्दत से समाहित दिखाई देती है। अपनी इन कहानियों में लेखिका आज के समय में महिलाओं के जीवन से जुड़ी बातों
की जांच पड़ताल में खास तौर पर संलग्न प्रतीत होती है ।

 सुरंजना पांडेय की कहानियों में वर्तमान सामाजिक परिवेश की नयी - पुरानी विषमताओं का सहज चित्रण हुआ है। 'मौत की
शिला ' शीर्षक कहानी में नववधू के रूप में दहेज हत्या की शिकार
निशा की विवाहकथा मार्मिक सामाजिक प्रसंगों का उद्घाटन करती है।इसी प्रकार 'ये सांवला रंग तेरा' कहानी में इसी से मिलते - जुलते एक दूसरे विषय में लड़कों में सांवले रूप रंग की जगह गोरे रंग की लड़की की चाहत से उपजी कठिनाई से यहां कहानी की पात्रा गुजरती दिखाई देती है। सुरंजना पांडेय की कहानियों में घर परिवार के आसपास और इसके भीतर - बाहर का परिवेश अक्सर कहानी की विषयवस्तु में आज के जीवन की कथा के अनगिनत पहलुओं को विचार और भाव का रूप प्रदान करता है। इस संग्रह की अगली कहानी 'एकांत' में इसके मुख्य पात्र राधेश्याम जी जीवन की ढलान पर अपने परिवार में बेटे - बहू की उपेक्षा का सामना करते जीवन में निरंतर खुद को
सिमटता महसूस करते हैं। परिवार में किसी को उनकी फिक्र नहीं है। इसी प्रकार ' बेटा कब जनोगी' शीर्षक कहानी में नियति अनिच्छा के बावजूद डाक्टरी परीक्षण में कन्या भ्रूण का पता चलने पर दो बार सास के दबाव से गर्भपात करवाने के लिए विवश 
होती है लेकिन तीसरी बार वह गर्भपात से इंकार कर जाती है और बेटी को जन्म देकर  मातृत्व का सुख पाती है।

आज के दौर में जिंदगी हर तरफ बदलती प्रतीत हो रही है और इसमें सबके आसपास जो अपेक्षित अनपेक्षित बातें व्यक्ति घटना और चीजों के रूप में निरंतर दस्तक देती हैं, यहां कहानी के रूप में इनको उपस्थित देखना लेखिका के जीवन चिंतन का मुकम्मल साक्ष्य पेश करता है।
'आत्मग्लानि ' शीर्षक कहानी में किसी बेटे के पास गांव में रह रही बूढ़ी मां के नल पर फिसलने की घटना के मार्फत लेखिका ने शहर में उससे दूर रहने वाले बेटे के मन में भाई के प्रति मां की देखरेख में कोताही के सहज - असहज भाव को कहानी का विषय बनाया है। इसी प्रकार समाज के निम्न तबकों के लोगों की जीवन संवेदना को भी इस संग्रह की कहानियों में भी मुकम्मल तौर पर देखने समझने की कोशिश की गई है और इस प्रसंग में ' उतरन ' शीर्षक कहानी की चर्चा समीचीन है। इसमें मीना जो शहर के किसी अमीर परिवार में घरेलू कामकाज करती है और दीवाली के मौके पर
उस घर से दो झोलों में मिले पुराने
कपड़ों को समेटकर लाती है तो उसे देखकर उसकी बेटी रिंकी त्योहार में पहने जाने वाले नये कपड़ों के बारे में सवाल पूछती है। सुरंजना पांडेय की कहानियां
ज्यादातर प्रश्नाकुलता की परिस्थितियों में अपने कथ्य और कथानक को रचती - गढ़ती दिखाई देती हैं और इनमें आदमी के मनप्राण का उद्वेलन खास तौर पर उजागर होता है। यह इनके कहानी लेखन की सबसे बड़ी विशेषता है और इस संग्रह की शेष अन्य कहानियों की विषयवस्तु की चर्चा भी इस प्रसंग में की जा सकती है।
सुरंजना पांडेय की पहचान  जनसाधारण के जीवन के कोनों अंतरों में झांकने देखने वाली लेखिका के रूप में की जा सकती है लेकिन समाज के सबसे विपन्न लोगों की जीवन दशा के प्रति भी
इनके मन संवेदना का समावेश है और यह बात ' दुखों का कहर' शीर्षक कहानी को पढ़कर समझा जा सकता है। इसमें गरीब औरत महिमा को युवावस्था में विधवा होने के बाद ससुराल और नैहर के
लोग घर से निकाल देते हैं और इसके बाद शहर के रेलवे कालोनी में लोगों के घरों पर आंगन चौका का काम करके वह अपनी बेटी के साथ किराए के मकान में रहकर उसे पढ़ाती - लिखाती है लेकिन किसी दिन कोचिंग सेंटर से लौटते उसे स्टेशन के पास रहने वाला कोई नशेड़ी अकेले में दबोच लेता है और पास की झाड़ियों में ले जाकर बलात्कार के बाद चाकू घोंपकर हत्या कर देता है। इस कहानी में महिमा भी बेटी के इस
हादसे के बाद रेलगाड़ी के नीचे कटकर मर जाती है और रेल पुलिस इन दोनों का अंतिम संस्कार करती है। इस प्रकार समाज में मनुष्य के जीवन के यथार्थ को देखने की यह दृष्टि और मौजूदा परिवेश में आदमी के
इर्द गर्द व्याप्त संवेदनहीनता के चतुर्दिक जाल को उजागर करने का यत्न लेखिका के रूप में उनकी अलग पहचान को उजागर करता है।
 सुरंजना पांडेय की कहानियों में आज के समाज में तमाम लोगों के जीवन की विडंबना का सहज चित्रण हुआ है। इस संग्रह की एक कहानी ' तूफान ' को पढ़ना भी रोचक प्रसंग के समान लगता है।  इसमें कहानी के मुख्य पात्र शर्मा जी बेटी की शादी के बाद कर्ज में आकंठ डूबे होने की दशा में अपने घर को गिरवी रखकर कर्ज को चुकाने की जुगत में जब संलग्न होते हैं तो उन्हें बेटे के तीव्र विरोध का सामना करना पड़ता है और बेटे के अपमान से आसपास के लोग उन्हें बचाते हैं । इस कहानी के अंत में शर्मा जी घर छोड़ कर हरिद्वार में जाकर साधु बन गये हैं और उनके माथे का कर्ज बेटे के इंकार के बाद उनकी विवाहिता बेटी चुकाती है । इस कथा संग्रह की कहानियां ज्यादातर घटना प्रधान हैं और इनमें महिलाओं के जीवन में व्याप्त विसंगतियों के अलावा समाज में उम्रदराज बुजुर्ग और वृद्धजनों की जीवन समस्याओं के प्रति भी लेखिका के
मन में समाहित चिंताओं का समावेश हुआ है। सुरंजना पांडेय की कहानियों में विस्तृत विषय  मौजूद हैं और ' झाड़-फूंक ' कहानी में गांव के सीधे सादे लोगों में इलाज के नाम पर साधु बाबाओं से इलाज कराने के अंधविश्वास पर लेखिका ने प्रहार किया है। इसी प्रकार आजकल गांवों में मुखिया पंचायत चुनाव में महिलाओं को आरक्षण मिलने के बाद यहां के पुरुषों में अपने नाम पर पत्नियों को चुनाव मैदान में उतारने की प्रचलित होती बातों की चर्चा ' हौसलों की उड़ान ' शीर्षक कहानी में शामिल है। इस रोचक कहानी में रतनपुर के नरेशजी ने अपने बलबूते पत्नी को मुखिया चुनाव में जितवा तो दिया है लेकिन वह उसका कामधाम वह खुद करते दिखाई देते हैं और इस बारे में जानकारी फैलने और गांव में पूछताछ के लिए पत्रकारों के आने पर नरेश जी की पत्नी वास्तविकता में अपने मुखिया पद और इसके दायित्वों को लेकर सजग होती है।

 'तृष्णा ' शीर्षक कहानी में खान-पान के साथ स्वास्थ्य जागरूकता से जुड़ी जरूरी बातों
को लेखिका ने कहानी के प्रतिपाद्य में उठाया है और इसमें मीठे खान-पान के शौकीन डायबिटीज के मरीज राकेश को उसकी पत्नी अलका अक्सर मीठी चीजों को खाने से मना करती है। इसी प्रकार ' झेंप ' शीर्षक कहानी में रिटायरमेंट के बाद घर में शशांक जी को बहु
शाम में नाश्ते में गुझिया मांगने मांगने पर इसे घर में खत्म होने की बात बताती है और वह उपेक्षित महसूस करते हैं। इस उम्र में जीवन की इन्हीं स्थितियों के आसपास की बातों को   ' रिटायरमेंट ' शीर्षक कहानी में लेखिका ने प्रस्तुत किया है। 'चोर 
' शीर्षक कहानी में स्टेशन पर भटकती लावारिस किसी लड़की की जीवन व्यथा को कथ्य में समेटा गया है। इसी विषय के आसपास में ' जिम्मेदारी ' शीर्षक कहानी की विषयवस्तु को भी देखा जा सकता है। इसके अलावा ' ददिया खाट ' कहानी में गांव घर की यादों में खोया लेखिका का मन दिवंगत दादी
के प्रति असीम प्रेम को कहानी की विषयवस्तु में प्रकट हुआ है।
सुरंजना पांडेय के इस कहानी संग्रह की अगली कहानियां भी
दिलचस्प हैं ।

' लगन ' शीर्षक कहानी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के जीवन में उनकी पढ़ाई - लिखाई के साथ जुड़ी रिजल्ट के अच्छे या खराब होने के साथ जुड़ी मन: स्थितियों को कहानी के कथ्य में समेटती है।



राजीव कुमार झा 

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साहित्य संसार: साक्षात्कार

कवि और कलाकार अशोक धीवर "जलक्षत्री "छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले में  स्थित तुलसी ( तिलदा नेवरा ) के निवासी हैं।   इन्होंने  दहेज प्रथा और समाज में कन्याओं की दशा के अलावा अन्य सामाजिक बुराइयों के बारे में पुस्तक लेखन और संपादन का काम किया है। मूर्तिकला में भी इनकी रुचि है।  यहां प्रस्तुत है ,  प्रश्न:आप अपने घर परिवार और शिक्षा दीक्षा के बारे में बताएं? *उत्तर:मेरा बचपन बहुत ही गरीबी में बिता। मेरे माता-पिता ने अपने नि:संतान चाचा- चाची के मांगने पर मुझे दान दे दिए थे। अर्थात् उन लोगों ने गोद लेकर मेरा परवरिश किया। तब से वे लोग मेरे माता-पिता और मैं उनका दत्तक पुत्र बना। इसलिए बचपन से ही मैंने ठान लिया था कि, जिसने अपने कलेजे के टुकड़े का दान कर दिया। उनका भी मान बढ़ाना है, सेवा करना है तथा जिन्होंने अपने पेट का कौर बचाकर मेरा पेट भरा, उनका भी नाम तथा मान बढ़ाना है। सेवा करना है। गरीबी के कारण दसवीं तक पढ़ पाया था। व्यावसायिक पाठ्यक्रम के तहत बारहवीं उत्तीर्ण किया। उसी समय मैंने सोच लिया था कि आगे बढ़ने के लिए कम पढ़ाई को बाधक बनने नहीं दूंगा और जो काम उच्च शिक्षा प्र