बिहार के कवि राजीव कुमार झा का प्रारंभिक जीवन सहरसा में व्यतीत हुआ और यहां इनके पिता अवध किशोर झा एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट के पद पर काफी साल कार्यरत रहे।
जिला स्कूल और तत्कालीन सहरसा कालेज में इनकी शिक्षा संपन्न हुई। पेशे से प्राइवेट स्कूल में सेकेंडरी स्कूल के शिक्षक इनके कुछ कविता संग्रह भी प्रकाशित हैं। यहां हम इनकी पांच कविताओं को प्रस्तुत कर रहे हैं...!
संपादक
यादों के गीत
जिंदगी
सच्चाई का बयान
सूरज के सामने
सुबह करती
रात के अंधेरे में
धरती गुमनाम बनी
रहती
सिर्फ सितारों की
रोशनी टिमटिमाती
अरी सुंदरी
इसी पहर नदी के
किनारे
हवा खामोश हो
जाती
चांदनी की रोशनी में
अरी सुंदरी
तुम यादों के गीत
गुनगुनाती
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ग्रीष्म की छांव
तुम इस किले की
सीढ़ियों पर चढ़ जाओ
अपने सिवा
अब किसी को
कुछ भी नहीं बताओ
इसकी ड्योढ़ी पर
खामोशी की धूप
हंसती
बरसात में
बारिश की बूंदें
टपकती
जाड़े के मौसम में
सामने की झील में
कितनी दूर से
यहां पंछी आते
यह प्यार का मौसम
पानी की
ठहरी धारा में
बैठे बिताते
वसंत की धूप में
वे उड़ कर
अपने देश चले जाते
अरी सुंदरी
हम तुम्हें अक्सर
ग्रीष्म की छांव में
बुलाते
चैत के मौसम में
गीत गाते
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पेड़ों की छाया
यौवन में नैसर्गिक
आभा से
दीप्त बना यह जीवन
मानो आज चांदनी
झील किनारे
चुपके से आई
अरी सुंदरी!
पहाड़ों में घने पेड़ों की
छाया में
तुम झिलमिल धूप
बनी
जंगल में छाई
अब कितना सुन्दर
यह संसार सुहाना
अपने मन की बात
बताने
कभी बहती नदी के
पास चली आना
सुबह सूर्य के उगने पर
अपना संसार बसाना
प्रेम से धरती का
हर कोना
तुम आलोकित करती
रोज शाम में
चिड़िया तुमको
इसी तरह से
हंसने के लिए कहती
सावन बीता गया
शरद ऋतु में
शीत सुंदरी के आने की
बाट
सूरज जोह रहा
तुम फूलों की
पंखुड़ियों सी कोमल
लगती
तुम्हें देखने
सुबह बाग बगीचों में
धूप छिटकती
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प्रेम कहानी
सुबह
नये भावों को
मन में रोज जगाती
घर के पास
धूप सुनहरी आती
नहा-धोकर
अरी सुंदरी
तुम पूजा करने
मंदिर में जाती
रसोई में खाना
रोज पकाती
बच्चों को नहलाती
कुंकुम केसर से
खुद को कभी सजाती
गणेश चतुर्थी के
पावन अवसर पर
मेला घूमकर आती
कविता लिखकर
यू ट्यूब पर सबको
रोज सुनाती
बेहद सुंदर लगती
अरी प्रिया
तुम जब भी हंसती
आकाश में मानो
बिजली तभी चमकती
रिमझिम बारिश में
नदिया बहती हंसती
तुम धूप बनी
अपने घर में
साजन के संग रहती
सावन बीत गया
कार्तिक के महीने में
खेतों में धान
अब पककर
सभी दिशाओं में
सुबह - सुबह महक
रहा
सपनों की रानी
याद करोगी
तुम किस्सों में
बसी रही हो
याद करोगी
कोई प्रेम कहानी
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प्यार की गंगा
अरी सुंदरी
तुम बेहद सुंदर गीतों को
तन्मय होकर गाती
दीपक से दीवाली में
सपनों की रात सजाती
सबके मन का प्यार
तुम्हें इतराता
काश ! कभी कोई
तुमको
जीवन का गीत सुनाता
बारिश में बादल
यौवन का हार लुटाता
सावन बारिश लेकर
आता
अरी सुंदरी!
धान के खेतों में
गीत तुम्हारा मन को
भाता
प्यार की बहती
गंगा में कोई
डूबकी
अब संग तुम्हारे
आज लगाता
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