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दीप्ति कुमारी को दिया गया स्मृति सम्मान, मेधावी छात्रा नम्रता कुमारी को दिया गया 'ईश्वरी देवी मेधा सम्मान'।

अद्भुत प्रतिभा के मनीषी और ऋषि-तुल्य साधक थे पं राम नारायण शास्त्री : अश्विनी चौबे 
सुप्रसिद्ध सामाजिक-चिंतक सूबेदार सिंह तथा बिहार लोक सेवा आयोग की सदस्य प्रो दीप्ति कुमारी को दिया गया स्मृति सम्मान, मेधावी छात्रा नम्रता कुमारी को दिया गया 'ईश्वरी देवी मेधा सम्मान'।

पटना, २४ जनवरी। अद्भुत प्रतिभा के मनीषी विद्वान और ऋषि-तुल्य साहित्य-साधक थे पं राम नारायण शास्त्री। वे एक महान हिन्दी सेवी ही नहीं, संस्कृत और प्राच्य साहित्य के अध्येता और अन्वेषक भी थे। उनकी पत्नी ईश्वरी देवी भी वेदों का ज्ञान रखने वाली विदुषी और गणितज्ञ थी। साहित्य, समाज और राजनीति की सेवा भी उन्होंने देश-सेवा के रूप में की। उनकी सरलता और विनम्रता अनुकरणीय थी। 
यह बातें बुधवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, पं राम नारायण शास्त्री स्मारक न्यास के तत्त्वावधान में आयोजित स्मृति-सह-सम्मान समारोह का उद्घाटन करते हुए, केंद्रीय राज्यमंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने कही। इस अवसर पर उन्होंने सुप्रसिद्ध सामाजिक-चिंतक सूबेदार सिंह एवं बिहार लोक सेवा आयोग की सदस्य प्रो दीप्ति कुमारी को 'अक्षर-पुरुष पं राम नारायण शास्त्री स्मृति सम्मान' से अलंकृत किया । उन्होंने माध्यमिक बोर्ड की परीक्षा-२०२३ में उच्चतम अंक प्राप्त करने वाली, निर्मला शिक्षा भवन उच्च विद्यालय, शाहपुर की छात्रा नम्रता कुमारी को, 'ईश्वरी देवी सर्वश्रेष्ठ गणितज्ञ छात्रा पुरस्कार' से पुरस्कृत किया। पुरस्कार स्वरूप उसे २५५१ रु की राशि भी प्रदान की गयी। स्मरणीय है कि स्वर्गीया ईश्वरी देवी शास्त्री जी की विदुषी अर्द्धांगिनी और गणितज्ञ थीं। समारोह के मुख्य अतिथि और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तार किशोर प्रसाद ने पं शास्त्री को नमन करते हुए कहा कि शास्त्री जी एक ऐसे साधक साहित्यकार थे, जिन्होंने अपनी बौद्धिक-रचनाओं से समाज का मार्ग-दर्शन किया।
सभा की अध्यता करते हुए, सम्मेलन के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि शास्त्री जी को स्मरण करना किसी तपस्वी ऋषि के सान्निध्य में जाने के समान पावन है। वे एक प्रणम्य साहित्यिक साधु-पुरुष थे। प्राच्य साहित्य के लिए किए गए उनके कार्य साहित्य-जगत में उन्हें अमरत्व प्रदान करते हैं। प्राच्य-साहित्य की दुर्लभ पोथियों और पांडुलिपियों का अन्वेषण, अनुशीलन और सूचीकरण कर उन्होंने हिन्दी साहित्य को एक बड़ा धरोहर दिया। इसके लिए शास्त्री जी सदैव श्रद्धा-पूर्वक स्मरण किए जाते रहेंगे। साहित्य सम्मेलन के प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने सम्मेलन की भी मूल्यवान सेवा की। 
डा सुलभ ने कहा कि शास्त्री जी एक ऐसे विरल महात्मा पुरुष हुए, जिनका अवतरण और लोकांतरण एक ही दिन, २४ जनवरी को हुआ। ऐसा सुयोग ईश्वरीय कृपा-प्राप्त विभूतियों के जीवन में ही घटित होता है। यह भी कितना सुंदर योग है कि उनकी पत्नी का नाम भी ईश्वरी देवी था और उनका भी तिरोधान २४ जनवरी को ही हुआ।
सिक्किम के पूर्व राज्यपाल गंगा प्रसाद ने,जो अस्वस्थ होने के कारण समारोह मेन उपस्थित नहीं हो सके, आभासी मध्यम से पं शास्त्री को श्रद्धांजलि दी। पं शास्त्री के पुत्र और न्यास के प्रमुख न्यासी अभिजीत कश्यप ने न्यास की गतिविधियों के संबंध में अपना प्रतिवेदन पढ़ा तथा सबके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की।
पटना विश्वविद्यालय के कुलपति डा कृष्णचंद्र सिन्हा, पद्मश्री विमल जैन, दीघा के विधायक संजीव चौरसिया, बीरेन्द्र कुमार यादव, डा मधु वर्मा आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए। अतिथियों का स्वागत न्यास के अध्यक्ष प्रो रमेश चंद्र सिंहा ने तथा धन्यवाद ज्ञापन पंकज कुमार ने किया। मंच का संचालन वरिष्ठ पत्रकार कृष्ण कांत ओझा तथा गौरव सुंदरम ने संयुक्त रूप से किया।ने किया।
इस अवसर पर,पं शास्त्री की पुत्रवधु रेणु कश्यप, संस्कृत के विद्वान आचार्य मुकेश कुमार ओझा, विनीता मिश्र, कृष्णरंजन सिंह, शैलेंद्र ओझा, रजनी सिन्हा, ज्ञानेश रंजन मिश्र, रंजना सिंह, गिरीश महतो, रणधीर कुमार मिश्र, अमरनाथ श्रीवास्तव, चंद्रसेन प्रसाद सिंह, अभिनव चौबे, नितिन दीक्षित समेत बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन उपस्थित थे।

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