" अहंकार, मात्र इंसान से ही नहीं भगवान से भी दूर करता हैं "
दुर्गा मन्दिर मैदान, सोनवर्षा कचहरी में दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा आयोजित श्री हरि कथा के तृतीय दिवस
सर्व श्री आशुतोष महाराज जी के शिष्य स्वामी कुंदनानंद जी ने श्री हरि के अनन्य भक्त नारद जी की जीवन गाथा का वर्णन करते हुए कहा कि सदा नारायण- नारायण का जाप करने वाले भक्त नारद को एक बार अहंकार हो गया।
और जब किसी को अहंकार हो जाता है तो उसे अपनी गलती दिखाई नहीं देती और ना ही दूसरों की बात अच्छी लगती है। नारद जी के अहंकार को देख प्रभु ने उसे समझाने का प्रयास किया । कहा जाता है नासमझ को समझाया जा सकता है मूर्ख को नहीं, जो स्वयं को अज्ञानी समझे उसे ज्ञान दिया जा सकता है लेकिन यदि अज्ञानी अपने को चतुर शिरोमणि समझे तो उसे समझाना कठिन ही नहीं असंभव है।
नारद जी की स्थिति देख प्रभु श्री हरि ने उन्हें कुपथ से सुपथ पर लाने के लिए माया का पसारा किया। क्योंकि प्रभु को अपने भक्त में लेस मात्रा भी अहंकार हो यह पसंद नहीं है प्रभु को विनम्रता पसंद है जो भक्त विनम्र होता है, धैर्यशील होता है वह जीवन में सब कुछ प्राप्त कर लेता है। रावण और विभीषण जी के जीवन का उदाहरण हमारे समक्ष बहुत बड़ी प्रेरणा रख रहा है। लंकापति रावण अभिमान के कारण सोने जैसी लंका खो देता है लेकिन विभीषण जीने विनम्रता से सब कुछ प्राप्त कर लिया ।प्रभु श्री कृष्ण ने राजा मोरध्वज की विनम्रता ,भक्ति और समर्पण का दर्शन करा कर
भक्त अर्जुन के अहंकार को खत्म किया यह अहंकार एक भक्त को भगवान से दूर करता है इसलिए किसी भक्त ने बड़ा सुंदर कहा कि अहंकार की दीवार ही सबसे बड़ी दीवार है गिर गई दीवार तो दीदार ही दीदार है।
भजन सभी भक्तजन झूम उठे।
सहरसा से बलराम कुमार
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें